Monday, 6 August 2012





                         कंक्रीट के जंगलों में पचासों मंजिला ऊँची इमारतें , शानदार शोपिंग कॉम्प्लेक्स, चढ़ती-उतरती लिफ्टें , रंग-बिरंगे परदे , रिसेप्शनिस्ट का मुस्कुराता चेहरा , कांटे-छूरी की आवाजों के साथ बिजनेस की बातें , टकराते जाम, इतराती नाज़ुकियां और बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएं  .................इनका अपवाद हो सकता है , मगर फलक का  एकीकृत रूप ऐसा ही बनता है । आप यहाँ की रफ्तार से कदम मिलाने की जद्दोजहद तो कर सकते  हैं , मगर सुकून भरी जिन्दगी की चाह न रखिएगा.... वैसे भी सतही आकर्षण कहाँ जीवन भर बाँध सकते हैं !

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